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महाशय धरमपाल गुलाटी अब 95 बरस के थे. सन 2017 में उनकी सालाना तनख्वाह 21 करोड़ रूपए थी. वे इसका ज़्यादातर भाग चैरिटी पर खर्च कर देते थे.
उन्होंने कई स्कूल और अस्पताल बनवाये. सन 1919 में उनके पिता चुन्नी लाल गुलाटी ने सियालकोट पाकिस्तान में मसाले की एक छोटी सी दुकान महाशियाँ दी हट्टी ( एम डी एच) खोली थी. धरम पाल जी महज पांचवे दर्जे तक पढ़े हैं पिता की दुकान में हाथ बँटाने के लिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था. वे सन 1947 में भारत आये और अमृतसर के एक शरणार्थी शिविर में रुके।
बाद में एक रिश्तेदार के साथ करोल बाग़ आ गए. पिता के दिए हुए 1500 रूपये में से 650 रुपये से उन्होंने अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए एक तांगा खरीदा और दो आना किराया लेकर कनाट प्लेस से करोल बाग़ लोगों को छोड़ने का काम किया। बाद में उन्हें यह काम रास नहीं आया और उन्होंने तांगा बेच दिया।
फिर अजमल खां रोड पर उन्होंने अपने पैतृक धंधे की मसाले की दुकान खोली. आज 16000 करोड़ के मसालों के बाजार में उनकी उस छोटी सी दुकान का सफर आज लगभग 1000 करोड़ रूपये है. वे 100 देशों में मसाले निर्यात करते हैं.